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कई वर्ष पहले मशरूम की खेती प्रायोगिक तौर पर सोलन (हि. प्र.) में साधारण खाली पड़े कमरे में प्रारम्भ की गई। सर्वप्रथम मशरूम उत्पादन में प्रयोग किया जाने वाला कम्पोसट का निर्माण खुले आसमान के नीचे खुली जगह एवं छोटे स्तर पर किया जाता था। सर्दियों के दिनों में मशरूम के कमरों में गर्मी प्रदान करने के लिए उसे गर्म किया जाता था। कुछ समय पश्चात् जम्मू और काश्मीर में उक्त तौर-तरीके से अनेकों मशरूम फार्म विकसित किये गये लेकिन पर्याप्त जानकारी न होने के कारण मशरूम उत्पादकों को इसका पर्याप्त लाभ न मिल सका और उन्हें काफी हानि का सामना करना पड़ा। कालान्तर में खाद्य एवं कृषि  संगठन के मशरूम विशेषज्ञों की टीम द्वारा कम्पोस्ट तैयार करने की अल्प अवधि विधि के बारे में जानकारी प्रदान की गई तथा मशरूम उत्पादन के लिए अनेक तकनीकी जानकारियाँ मिलने के बाद उत्पादन में काफी वृद्धि पायी गई। अल्प अवधि विधि द्वारा तैयार किये गये कम्पोस्ट के 100 200 kg से जहां जो पहले 5-6 kg मशरूम उत्पन्न होता था वह वृद्धि के फलस्वरूप 16-18 kg हो गई है। इससे लोगों की रूचि मशरूम का उत्पादन छोटे-छोटे स्तर पर तथा विभिन्न स्थानों पर व्यावसायिक स्तर पर किया जाने लगा है।

गाँव में मशरूम उत्पादन कैसे किया जाता है

काश्मीर में मशरूम उत्पादन गृह कच्चे अथवा पक्के ईंटों से बनाये जाते हैं और उसमें लकड़ी की आलमारी अथवा टांड का निर्माण करके मशरूम उगाये जाने की प्रथा प्रचलित हैं। ऐसे मशरूम गृहों में रोशनदान की व्यवस्था की गई है और मशरूम गृह को गर्म करने के लिए लकडी के बुरादों का स्टोव इस्तेमाल किया जाता है। मशरूम उत्पादन का कमरा छोटा रखा जाता है तथा कम्पोस्ट बनाने के लिए लम्बी विधि का इस्तेमाल किया जाता है। मशरूम गृह की छतों का निर्माण जंग रोधी लोहे की चादरों से किया जाता है। इस प्रकार मशरूम गृह में ठण्डक व गर्मी पहुँचाकर साधारण खर्च द्वारा दो या तीन फसलें ली जाती हैं।

उत्तरी भारत के मैदानी भागों में सर्दी के महीनों में मशरूम की एक फसल ली जाती है। यह विधि आजकल जम्मू, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी  उत्तर प्रदेश और दिल्ली में भली भांति प्रचलित है और उत्पादित मशरूम को स्थानीय बाजार में बेचपने की प्रथा व्यवहार में हैं। हरियाणा में मशरूम उत्पादन किसानों के लिए एक स्थायी एवं कृषि से सम्बन्धित व्यवसाय के रूप में विकसित हुआ है। वहाँ पर मशरूम से किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है। वहाँ कच्चे ईंटों से मशरूम गृह का निर्माण करके और उसमें टाँड अथवा अलमारी सरकण्डा से बनाकर मशरूम उगाया जाता हैं। किसान  फसल बहुत आसानी से प्राप्त कर लेते हैं। मशरूम का स्पान सरकार द्वारा बाजार में उपलब्ध कराया जाता है। किसान प्रायः मशरूम गृह के लिए जिस शेड का निर्माण करते हैं उसकी माप 70x 30 फीट होती है और उसमें 4-5 टाँड निर्मित किये जाते हैं। एक शेड में सामान्यतः 10-15 टन कम्पोस्ट का प्रयोग किया जाता है। कम्पोस्ट की गहराई सामान्यतः 5-6 इंच रखी जाती है। वहाँ के मशरूम उत्पादक खेतों की मिट्टी और गोबर की खाद को फार्मलीन से उपचारित करने के बाद उसे केसिग पर्त के रूप में इस्तेमाल करते हैं। वहां पर प्रति 100 kg कम्पोस्ट से सामान्यतः 10-15 kg मशरूम का उत्पादन हो जाता है।

मशरूम उत्पादन की व्यावसायिक इकाई

हमारे देश में अब अत्याधुनिक मशरूम गृहों के निर्माण का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है जिसमें कम्पोस्ट की पाश्चुराइज्ड करने की सुविधा निहित रहती है। पंजाब और महाराष्ट्र में कई शीत गृहों को लाभ के दृष्टिकोण से मशरूम गृहों में रूपान्तरित कर दिया गया हैं। वहाँ पर मशरूम बनाने की अल्प अवधि विधि प्रयोग में लायी जाती हैं। अल्प अवधि में प्रथम अवस्था में कम्पोस्ट बनाने की सामग्री को मशरूम गृह से बाहर रखकर आवश्यक क्रियायें सम्पन्न करायी जाती हैं। इसके बाद कम्पोस्ट को विशेष तरीके से निर्मित अलमारियों में भर लिया जाता है और उसे शेल्फ में ही पाश्चुरीकृत किया जाता है सम्पूर्ण प्रक्रिया के पश्चात् उपयुक्त निर्मित कम्पोस्ट पर बीजाई आवरण मृदा परत और उत्पादन किया जाता है । मशरूम गृह के अन्तर्गत सभी कमरों को वैज्ञानिक तरीके में कर दिया जाता है जहाँ पर कमरे की गर्म करने व ठण्डा करने की सुविधा उपलब्ध रहती है। किसान फूडस एवं पॉण्डस इण्डिया लिमिटेड ने ऊटी की पहाड़ियों पर व्यावसायिकक मशरूम उत्पादन गृहों का निर्माण प्लास्टिक जैसी सामग्री का इस्तेमाल करके किया है। इसी प्रकार बंगलौर में तथा भागलपुर (बिहार) में कई इकाईयाँ व्यावसायिक रूप से मशरूम का उत्पादन कर रहीं हैं। इलाहाबाद में भी एक व्यावसायिक मशरूम उत्पादन केन्द्र सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है।

भविष्य की कार्य योजना

मशरूम उत्पादन को भारतवर्ष के विभिन्न आदिवासी क्षेत्रों में प्रचारित एवं प्रसारित करने का कार्य मुख्य रूप से किया जा रहा है। मशरूम उत्पादन से विदेशी मुद्रा अर्जित करने की बहुत सम्भावनायें हैं। आवश्यकता इस बात की है कि मशरूम उत्पादन को ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उद्योग के रूप में विकसित करने कम्पोस्ट का निर्माण करने, स्पान  वितरण करने और उत्पादित मशरूम को बाजार में विक्रय हेतु सरकारी प्रयास किये जायें।

मशरूम फार्म की रूपरेखा

मशरूम उत्पादन गृह के अन्दर किया जाने वाला उद्यान सम्बंधी क्रिया है इसलिए उसके उत्तम उत्पादन के लिए मशरूम फार्म की विभिन्न प्रकार की रूपरेखा तैयार की जाती है। सामान्यतः मशरूम फार्म के अन्तर्गत कई भवनों का निर्माण इस प्रकार किया जाता है कि सम्पूर्ण वर्ष आर्द्रता, तापक्रम एवं अन्य अपेक्षित वातावरण नियन्त्रित करके कई फसलें की जा सकें। मशरूम फार्म की सबसे महत्वपूर्ण बात यह होनी चाहिए कि वहाँ पर कम खर्च में अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सके तथा फॉर्म पर कार्य करने के लिए स्त्री एवं पुरूष मजदूर आसानी से मिल सकें। सामान्यतः मशरूम गृह में कम से कम तीन उत्पादन कक्ष और वल्क कक्ष होना चाहिए जिसकी क्षमता 20 टन कम्पोस्ट की हो।

मशरूम फार्म के लिए स्थान का चयन

मशरूम फार्म के लिए स्थान का चुनाव करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए –

(1) मशरूम फार्म में भवन का निर्माण ऐसे स्थान पर किया जाना चाहिए जो मुख्य सड़क पर स्थित हो। इससे कम्पोस्ट तैयार करने के लिए आवश्यक सामग्री लाने में तथा उत्पादन को बेचने के लिए बाजार भेजने में सुविधा रहती है।

(2) मशरूम फार्म गृह ऐसे स्थान पर स्थित हो जहाँ पर पानी और बिजली की उत्तम व्यवस्था हो तथा प्रदूषित जल निकास की व्यवस्था भी ठीक हो।

(3) बिल्डिंग ऐसे स्थान पर स्थित होनी चाहिए जहाँ से पाँच मीटर चौड़ी सड़क को मुख्य सड़क से आसानी से जोड़ा जा सके तथा इस सड़क पर ट्रक व अन्य गाड़ियाँ भली प्रकार से सामान ला सके और ले जा सके।

(4) फार्म की रूपरेखा का मानचित्र बनाकर उसके अनुसार विभिन्न भवनों को निर्मित करना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि कार्य में 12 कमरे निर्माण करने की योजना है तो 3 या 4 कमरे प्रारम्भ में निर्मित करने चाहिएँ।

एक आदर्श  व्यावसायिक मशरूम उत्पादन फार्म में 12 कमरे 200 वर्ग मीटर क्षेत्र में होने चाहिएँ। इसमें दो वल्क कक्ष होने चाहिएँ जिसकी क्षमता 20 टन के लगभग होनी चाहिएँ। कम्पोस्ट यार्ड की माप 100 x 45 फीट प्रथम प्रावस्था के लिए होनी चाहिए जिसे भविष्य में बढ़ाये जाने की सम्भावना रहे। कम्पोस्ट निर्माण हेतु यार्ड ढका होना चाहिए तथा उसमें जल निकास की उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए।

मशरूम फार्म की आकृति

मशरूम फार्म की आकृति विभिन्न देशों में वहाँ की स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार बनायी जाती है। सामान्यतः हालैण्ड में बहुप्रचलित फार्म आकृति को विश्व के अनेक देशों ने आंशिक परिवर्तन करके पसन्द किया हैं। मुख्यतः उत्पादन में दो विधियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं।

(1) एक जोन विधि  – इस विधि में बीजाई के बाद की क्रिया और फसल उत्पादन एक ही कक्ष में किया जाता है। प्रत्येक कमरे को वैज्ञानिक विधि से विद्युत प्रवाह अवरोधी किया जाता है जिससे उच्च तापक्रम को आसानी से नियन्त्रित किया जा सके। इस विधि में उत्पादन निश्चित  क्यारियों में की जाती है, जिसे शेल्फ वेड कहते हैं।

(2) द्वितीय जोन विधि – इस विधि में पीक हीटिंग और बीजाई  के बाद की प्रक्रिया और फसल उगाने की प्रक्रिया अलग-अलग कमरों में की जाती है। इस विधि में फसल कक्ष का तापक्रम 16-20 डिग्री  से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। मशरूम उत्पादन में प्रमुखतयः नीदरलैण्ड में 200 वर्ग मीटर उत्पादन सतह वाले कमरों को मशरूम फसल कक्ष के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिसमें आलमारी या टाँड की दो लाइनें होती हैं और जिसमें से प्रत्येक 5 क्यारियों, एक के ऊपर दूसरी निर्मित की जाती है। वहाँ पर कमरे की माप 6 x 18 x 9 मीटर रखी जाती है। कमरे के सामने 4 मीटर चौड़ा रास्ता रखा जाता है और कमरे के पीछे की तरफ कम्पोस्ट की भराई के लिए सीमेंट वाला पक्का स्थान रखा जाता है।

बल्क कक्ष – मशरूम फार्म पर बल्क कक्ष का एक प्रमुख स्थान है। बल्क कक्ष का आकार कम्पोस्ट निर्माण की मात्रा एवं फार्म की क्षमता पर निर्भर करता है। भारतीय परिस्थित में सामान्यतः 20 टन क्षमता वाले मशरूम बल्क कक्ष के लिए लम्बाई 36 फीट, चौड़ाई 9 फीट और ऊँचाई 12 फीट का बल्क कक्ष उपयुक्त माना जाता हैं। बल्क कक्ष की दीवारें भली प्रकार वैद्युत प्रवाह अवरोधक होना चाहिए तथा पलेनम निचले किनारे पर 3 फीट गहरा और ऊपरी किनारे पर 6 इंच गहरा होना चाहिए। इस प्रकार एक निश्चित ढाल बन जाता है और कम्पोस्ट निर्माण के समय पर्याप्त मात्रा में भाप को स्थान मिल जाता है।

कम्पोस्ट निर्माण हेतु प्लेटफार्म – कम्पोस्ट बनाने के लिए प्लेटफार्म दो हिस्सों से मिलकर बना होना चाहिए। एक हिस्सा कुछ निचला होना चाहिए जिसमें सीपेज होना चाहिए और उससे मध्यम आकार का टैंक (जलकुण्ड) मिला होना चाहिए जिसमें सीपेज का पानी एकत्रित हो सके। प्लेटफार्म का दूसरा हिस्सा जमीन से लगभग 3 फीट ऊँचा होना चाहिए और यह भी छोटे से जलकुण्ड से सम्बद्ध होना चाहिए। जिसमें सीपेज का पानी एकत्रित हो सके। यह शेड से ढका होना चाहिए। लगभग 10 टन कम्पोस्ट बनाने के लिए 50 x 25 फीट आकार का प्लेटफार्म पर्याप्त होता है। बड़े मशरूम फार्म के लिए बड़ा प्लेटफार्म आवश्यकता नुसार बनाया जाता है।

विभिन्न यन्त्र और सुविधायें  – कम्पोस्ट निर्माण के लिए एवं उसे पाश्चुरीकृत करने के लिए सभी प्रकार की आधुनिक सुविधायें उपलब्ध होनी चाहिए तथा निर्धारित विधि के अनुसार गर्म हवा के परिवहन की व्यवस्था होनी चाहिए।

पाश्चुराइजेशन कक्ष – भारतवर्ष कई फार्मो में पाश्चुराइजेशन का कमरा इस प्रकार होता है जहाँ पर ट्रे में भरे कम्पोस्ट को कमरे के बीच में संग्रहित कर लिया जाता है। इस कमरे के एक किनारे से भाप की पाइप इस प्रकार रखी जाती है जो जमीन से लगभग 4 फीट ऊँचाई से प्रवाहित किया जाता है। आधुनिक तरीकों से निर्मित पाश्चुराइजेशन कक्ष भली प्रकार वैद्युत प्रवाह निरोधक बनाया जाता है तथा उसमें गर्म भाप को प्रवाहित करके आवश्यकता नुसार उपयुक्त तापक्रम बनाये रखा जाता है।

मशरूम उत्पादन कक्ष – मशरूम उत्पादन कक्ष में फर्श को छोड़कर दीवारें एवं छत सभी वैघुत प्रवाह अवरोधक बनाया जाता है। यूरोप में उत्पादन कक्ष बहुत बड़ा बनाया जाता है। लेकिन भारत वर्ष में कमरे विभिन्न आकार के सुविधाजनक 15 x 17 x 10- 12 फीट अथवा 25 x 15 x 10.12 फीट अथवा 35 x 20 x 12 फीट अथवा 35 x 25 x 12 फीट माप के बनाये जाते हैं। इन कमरों के रैक  एवं शेल्फ को लकड़ी के आधार पर लोहे से निर्मित किया जाता है। थैलियों में उत्पादन के लिए दो शेल्फ के बीच में न्यूनतम 26-28 इंच की दूरी होनी चाहिए। उत्पादन कक्ष में हल्का सा ढलान होना चाहिए, जिससे पानी निकालने में सुविधा रहे।

कम खर्च वाले बल्क कक्ष एवं उत्पादन कक्ष – परीक्षणों से ज्ञात हो चुका है कि लोहे के पाइपों का ढाँचा बनाकर उत्तम गुणवत्ता वाला मोटा पॉलीथीन की चादरों से कम खर्च वाली मशरूम बल्क कक्ष और उत्पादन कक्ष बनाया जा सकता है। इस प्रकार के मशरूम निर्माण में वैद्युत प्रवाह अवरोधक की मोटाई 15cm रखना चाहिए।

केजिंग पाश्चुराइजेशन चैम्बर – केंजिग पाश्चुराइजेशन चैम्बर को बल्क चैम्बर की भाँति विद्युत प्रवाह, अवरोधी बनाना चाहिए। केजिंग मिट्टी को ट्रे में भरकर 65 डिग्री  पर 4-6 घण्टे तक पाश्चुरीकृत  किया जाना चाहिए।

वार्मिग और भाप इकाई की स्थापना- गर्मी प्रदान करने वाली इकाई बॉयलर  अथवा हीटर  पर तथा भाप इकाई बॉयलर पर आधारित होता है। बॉयलर  की क्षमता, फार्म की दक्षता, फार्म का माप, वातावरण और स्थिति के अनुसार रखना चाहिए।

मशरूम उगाने हेतु क्यारियाँ – मशरूम गृहों के निर्माण के बाद तथा कम्पोस्ट निर्माण के बाद क्यारियों का बनाना महत्त्वपूर्ण होता हैं। जहां तक संभव हो कम्पोस्ट निर्माण के बाद उसे यथाशीघ्र क्यारियों मे स्थान्तरित कर दिया जाना चाहिए क्योंकि ढ़ेर में पडे़ रहने पर कम्पोस्ट की गुणवत्ता में शनैः शनैः हरास न्यूनता आती रहती है। मुख्यरूप से मशरूम उत्पादन हेतु निम्न प्रकार क्यारियों का निर्माण किया जाता है –

1. शेल्फ सिस्टम – इस प्रणाली में मशरूम हाउस में शेल्फ बनाया जाता है। शेल्फ लकड़ी एवं स्टील के फ्रेम से निर्मित होता है जिस पर क्यारियाँ स्थापित की जाती हैं। क्यारियों में प्रयुक्त किये गये कम्पोस्ट की मोटाई 14 से 25 सेमी तक रखी जाती है। इस प्रणाली में बीजाई  और उत्पादन उसी कमरे में की जाती है।

2. ट्रे सिस्टम – इस विधि में ट्रे जो लगभग 100 सेमी x 50 सेमी x 15 सेमी माप की होती है, प्रयोग में लाई जाती हैं। ट्रे में कम्पोस्ट भर दिया जाता है और फिर बिजाई करके उत्पादन कक्ष में रख लिया जाता है। सामान्य माप  के ट्रे में लगभग 20-30 किग्रा कम्पोस्ट भरा जाता है।

3. पॉलीथीन के थैलों में उत्पादन – ट्रे निर्माण काफी महंगी होने के कारण मोटे एवं उत्तम गुणतत्ता वाले पॉलीथीन के थैले अधिकतर प्रयोग में लाये जाते हैं। यह थैले ठंडे तापक्रम वाले स्थानों के लिये और नियंत्रित तापक्रम वाले मशरूम गृहों के लिये उपयुक्त रहते हैं। सामान्यतः एक थैले में 25 किग्रा तक कम्पोस्ट भरा जा सकता है।

पॉलीथीन के मशरूम गृह – अनेक प्रकार के मशरूम गृहों का निर्माण सुविधा और स्थान की उपलब्धता के आधार पर किया जाता है। दो परतों  वाले ईटों से निर्मित मशरूम गृहों के बीच में रिक्त स्थान छोड़कर विशिष्ट विधि से मशरूम गृह बनाया जाता है तथा आवश्यकता नुसार  शीट को छत निर्माण में प्रयुक्त किया जाता है। विद्युत प्रवाह अवरोधक  के लिये थर्मोकोल और फायबर ग्लास  प्रयोग किया जाता है। कम खर्चीला होने के कारण आजकल पॉलीथीन के मशरूम गृह जो स्टील पाइप के ढाचे  से निर्मित किये जाते हैं, काफी प्रचलन में हैं। इसे विद्युत प्रवाह अवरोधक  करने के लिये थर्मोकोल प्रयोग में लाया जाता है तथा उत्तम गुणवत्ता वाले 500 गेज के पॉलीथीन को मशरूम गृह को ढकने के लिये प्रयोग में लाया जाता है। सामान्य रूप से आजकल काले रंग का पॉलीथीन उपयुक्त माना जाता है। काले पॉलीथीन को बाहर की तरफ से एल्यूमीनियम पेण्ट से रेंटिंग कर देने से सूर्य के सीधे प्रकाश से गर्मी के शोषण से बचाव किया जाता है।

मशरूम गृह स्वच्छता के दस प्रमुख सिद्धान्त

मशरूम उत्पादकों को सफाई एवं स्वस्थ वातावरण बनाये रखने के लिये कुछ महत्वपूर्ण सिद्धान्तों का अनुसरण करना चाहिए। ऐसा करना से 95 प्रतिशत कीट व रोग कारक परजीवी एवं प्रतिस्पर्धी स्वतः नष्ट हो जाते है। उल्लेखनीय हैं कि इन सिद्धान्तों के अतिरिक्त आवश्यकता नुसार कवक एवं कीटनाशी रसायन का भी प्रयोग करना वांछनीय होता हैं।

सफाई एवं स्वस्थ वातावरण के दस सूत्रीय प्रमुख सिद्धान्त

(1) सभी कमरों, उपकरणों, औजारों, चुनाई की टोकरियों आदि का विधिवत निर्जीवीकरण करके मशरूम उत्पादन हेतु उपयुक्त वातावरण का सृजन करना।

(2) उत्पादन कक्ष में बाहर से आयी हवा, श्रमिकों आगन्तुकों अथवा अन्य लाई गई सामग्री के माध्यम से हानिकारक जीवाण्ुओं के आने को रोकना।

(3) आवरण मृदा जो विभिन्न परजीवी एवं रोग को उत्पन्न करने का माध्यम हो सकता है, इसके प्रयोग में विशेष सावधानी रखना।

(4) उत्पादन कक्ष से अनावश्यक पदार्थो को यथाशीघ्र हटाना।

(5) मशरूम उत्पादन इकाई के बाहर अनावश्यक सामग्री यथा प्रयोग में लाई जा चुकी कम्पोस्ट खाद, राख व मशरूम के अवशेष  आदि नहीं पड़े रहने चाहिएँ। इससे जैविक संक्रमण की संभावना रहती है।

(5) किसी भी संक्रमित क्षेत्र को अन्य क्षेत्रों से शीघ्र अलगाव करना (प्ेवसंजपवद व िकपेमंेमक।तमं)।

(6) कम्पोस्ट को पक्के स्थान पर अति आधुनिक विधि से निर्मित करना।

(7) कम्पोस्ट निर्माण में नियंत्रित विधि से कमरे में किण्वन करवाना तथा यथाघ्र कम्पोस्ट को उपयुक्त अध स्तर के रूप में परिवर्तित कर लेना।

(8) मशरूम उत्पादन के लिये विभिन्न वृद्धि अवस्थाओं के अनुकूल वातावरण बनाये रखना।

(9) कोई कार्य अथवा परिवर्तन नये फसल से पुराने फसल की ओर करना चाहिए। पुराने फसल से नये फसल की तरफ कदापि नहीं करना चाहिए।

मशरूम उत्पादन के प्रमुख पहलू

मशरूम उत्पादन के लिये क्यारियाँ तैयार की जाती हैं। इसके वृद्धि के लिये कम तापक्रम की आवश्यकता पड़ती है इसलिये इसे मशरूम गृह, मशरूम ग्लास हाउस अथवा ऐसे स्थान पर उगाया जाता है वहाँ पर धूप से बचने के लिये छत हो। यह छत पक्का सीमेंट, सीमेंट की चादरों अथवा मोटी पॉलीथीन की चादरों से निर्मित किया जा सकता है। सामान्य रूप से मशरूम को तेज धूप से बचाया जाता है। ऐसा इसीलिये किया जाता है क्योंकि सूर्यक की तेज रोशनी में मशरूम का रंग परिवर्तित होकर बदरंग हो जाता है। सूर्य की सीधी किरणों के दुष्प्रभाव से बचाने के लिये प्राचीनकाल में मशरूम उत्पादक उसे विभिन्न गुफाओं, बगीचों, ग्रीन हाउस, ग्लास हाउस अथवा अन्य उपयुक्त स्थानों पर उगाते थे। इस प्रकार का स्थान चुनाव करने के बाद क्यारियाँ बनाई जाती हैं। इन्हीं क्यारियों में उपयुक्त विधि से बनी हुयी कम्पोस्ट को मिलाया जाता है। यह कम्पोस्ट बनाने के बाद उसके अन्दर विद्यमान पोषक तत्त्व मशरूम कवक के उपयोग के लिये सुलभ बन जाते हैं। यह कम्पोस्ट मिट्टी, पीट, बालू, खाद जिप्सम, पशुओं के बिछावन आदि को मिलाकर विशिष्ट विधि से सड़ाकर बनाया जाता है।

मशरूम के लिये कम्पोस्ट विभिन्न घास फूस, भूसा, पुआल, छिल्के, पशुओं की खाद और अन्य अनुपयोगी कूड़े करककट आदि से भी तैयार किया जता है। कुछ मशरूम लकड़ी के ठूंठों, टहनियों एवं पत्तियों आदि पर भी उगाये जाते हैं। इस प्रकार अधःस्तर पर मशरूम के स्पान से बीजाई की जाती है तथा विधि के अनुसार आवरण मृदा बिछाई जाती है।

मशरूम उत्पादन का उपयुक्त समय

विभिन्न मशरूम को उत्पादित करने के लिये विभिन्न तापक्रमों की आवश्यकता होती है। जहाँ पर मशरूम उत्पादन के लिये तापक्रम और नमी को पूर्ण रूप से नियंत्रण करने की उपयुक्त व्यवस्था नहीं है वहाँ ऐसे मौसम में उगाना चाहिए जिस समय उसके उत्पादन के लिये पर्याप्त नमी और अनुकूल तापक्रम बना रहता है।

सामान्यतः बटन मशरूम – जो सम्पूर्ण विश्व के अनेक देशों में उगाया जाता है, इस को निम्न तापक्रम की आवश्यकता पड़ती है। इसीलिये शीतल और निम्न तापक्रम वाला मौसम इसकी खेती के लिये उपयुक्त रहता है। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में इसे सर्दियों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।

स्ट्रा-मशरूम भी विश्व के विभिन्न देशों में अधिकता से पैदा किया जाता है। लेकिन इसकी उपज कम होने के कारण यह व्यावसायिक उत्पादन एवं लाभ के दृष्टि से अच्छा नहीं माना जाता। इसको लोग स्वाद, सुगंध एवं पोषक तत्त्वों के दृष्टिकोण से खाना अधिक पसंद करते हैं।

ओयस्टर मशरूम को सामान्यत के मध्य सफलता पूर्वक उगाने की प्रथा, अधिकांश लोगों द्वारा अपनाई जाती है। यह तापक्रम ओयस्टर मशरूम के लिये उपयुक्त माना जाता है। बैंगलोर में ओयस्टर मशरूम को व्यवसायिक रूप से उगाया जाता है तथा छोटे बड़े होटलों में बड़े सम्मान से परोसा और पसन्द किया जाता है।

उक्त फसल चक्र को अपना कर सम्पूर्ण वर्ष विभिन्न मशरूम की खेती की जा सकती है। जहाँ वातावरण का तापक्रम एवं आर्द्रता को नियंत्रित करने की सुविधा है जहाँ वर्ष भर में मशरूम की कई फसलें ली जाने की सुविधा होती है।

By Rishi

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